आयु और मोहनीय का संक्रमण नहीं होता ।
गोत्र, नामकर्म आदि के संक्रमण सत्ता की अवस्था में ही संभव है, उदय में आने के बाद संक्रमण किसी का भी होता ही नहीं है ।
पं.रतनलाल बैनाड़ा जी
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संक्रमण- – जो कर्म प़कृति जीव के बंधी थी उसको अन्य प़कृति रुप परिणमन हो जाना संक्रमण कहलाता है।जीव के परिणामों के कारण पहिले बांधी हुई कर्म प़कृति बदलकर अन्य प़कृति रुप हो जाती है यही संक्रमण कहलाता है।यह भी पांच प्रकार के होते हैं। अतः उक्त कथन सत्य है कि आयु और मोहनीय का संक्रमण नहीं होता हैं।गोत्र,नामकर्म आदि के संक्रमण सत्ता की अवस्था में ही संभव है, उदय में आने के बाद संक्रमण किसी का होता ही नहीं है।
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संक्रमण- – जो कर्म प़कृति जीव के बंधी थी उसको अन्य प़कृति रुप परिणमन हो जाना संक्रमण कहलाता है।जीव के परिणामों के कारण पहिले बांधी हुई कर्म प़कृति बदलकर अन्य प़कृति रुप हो जाती है यही संक्रमण कहलाता है।यह भी पांच प्रकार के होते हैं। अतः उक्त कथन सत्य है कि आयु और मोहनीय का संक्रमण नहीं होता हैं।गोत्र,नामकर्म आदि के संक्रमण सत्ता की अवस्था में ही संभव है, उदय में आने के बाद संक्रमण किसी का होता ही नहीं है।