यदि आपके भाव 1 से 100 तक परिणमित होते हैं तो 51 से 100 को विशुद्ध और 1 से 50 तक के भावों को संक्लेश स्थान समझो ।
ज्ञानशाला – समयसार गाथा – 59
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4 Responses
संक्लेश–असाता-वेदनीय कर्म के बंध योग्य परिणाम हैं या तीव़ कषाय रुप परिणाम का नाम संक्लेश है। विशुद्वि–साता-वेदनीय कर्म के यथायोग्य परिणाम का नाम विशुद्वि है अथवा कषाय की मंदता का नाम विशुद्वि हैं।
अतः आपके भाव 1 से 100 तक परिणमित होते हैं तो 51 से 100 तक विशुद्ध और 1 से 50 तक के भावों को संक्लेश स्थान समझना चाहिए।
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संक्लेश–असाता-वेदनीय कर्म के बंध योग्य परिणाम हैं या तीव़ कषाय रुप परिणाम का नाम संक्लेश है। विशुद्वि–साता-वेदनीय कर्म के यथायोग्य परिणाम का नाम विशुद्वि है अथवा कषाय की मंदता का नाम विशुद्वि हैं।
अतः आपके भाव 1 से 100 तक परिणमित होते हैं तो 51 से 100 तक विशुद्ध और 1 से 50 तक के भावों को संक्लेश स्थान समझना चाहिए।
Yahan par “Medium bhavon” ke liye, kya koi sthaan nahin hai?
समयसार तो शुभोपयोगी 6-7वें गुणस्थान वाले मुनि को अज्ञानी आदि कहते हैं तो वे तो विशुद्ध से नीचे वालों को संक्लेष भाव ही कहेंगे न ।
Okay.