रत्नत्रय से युक्त एक मुनि भी संघ होता है क्योंकि रत्नत्रय में तीन हैं। संघ –> ऋषि (ऋद्विधारी), मुनि (अवधि/ मन:पर्यय/ केवलज्ञानी), यति (मूल/ उत्तर गुणों के पालक/ तपस्वी/ यत्नाचारी), अनगार मिल कर भी संघ कहलाता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थसूत्र 6/13)
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