संयम, बंध (बंधन) नहीं, अनुबंध है; क्योंकि स्वीकृति से है ।
संसार के अनुबंध, बंधन के लिये,
परमार्थ के अनुबंध, बंधन से छूटने के लिये होते हैं ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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संयम धर्म का एक मूल आधार है। इसमें व़त व समिति का पालन करना वह मन वचन काय की अशुभ प़वृति का त्याग करना तथा इन्द्रियों को वश में रखना होता है। यह भी दो प्रकार के हैं,सभी जीवों की रक्षा करना तथा पांचों इंद्रियों और मन को नियंत्रित करना होता है। उक्त कथन सत्य है कि संयम बंधन नहीं है बल्कि अनुबंध है क्योंकि स्वीकृति से होता है। अतः संसार के अनुबंध बंधन के लिए नहीं बल्कि परमार्थ के अनुबंध,बंधन से छूटने के लिए होते हैं। जीवन में संयम का पालन करना आवश्यक है ताकि कल्याण हो सकता है।
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संयम धर्म का एक मूल आधार है। इसमें व़त व समिति का पालन करना वह मन वचन काय की अशुभ प़वृति का त्याग करना तथा इन्द्रियों को वश में रखना होता है। यह भी दो प्रकार के हैं,सभी जीवों की रक्षा करना तथा पांचों इंद्रियों और मन को नियंत्रित करना होता है। उक्त कथन सत्य है कि संयम बंधन नहीं है बल्कि अनुबंध है क्योंकि स्वीकृति से होता है। अतः संसार के अनुबंध बंधन के लिए नहीं बल्कि परमार्थ के अनुबंध,बंधन से छूटने के लिए होते हैं। जीवन में संयम का पालन करना आवश्यक है ताकि कल्याण हो सकता है।