“ये कर्म घुमाता है मुझको…”
वास्तव में ये कर्म नहीं घुमाता है, कर्म के उदय में हम जो रागद्वेष करते हैं वह घुमाता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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संसार—संसरण या आवागमन करने को कहते हैं. परिभ़मण और परिवर्तन कर्म के फलस्वरुप आत्मा को भवान्तर की प़ाप्ति होना संसार है।अतः कर्म नही घुमाता है बल्कि कर्म के उदय में जो हम रागद्वेष,मोह आदि करते हैं वही घुमाता रहता है।कर्म के वशीभूत हुआ जीव मनुष्य, देव आदि चार गतियों में परिभ़मण करता रहता है।
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संसार—संसरण या आवागमन करने को कहते हैं. परिभ़मण और परिवर्तन कर्म के फलस्वरुप आत्मा को भवान्तर की प़ाप्ति होना संसार है।अतः कर्म नही घुमाता है बल्कि कर्म के उदय में जो हम रागद्वेष,मोह आदि करते हैं वही घुमाता रहता है।कर्म के वशीभूत हुआ जीव मनुष्य, देव आदि चार गतियों में परिभ़मण करता रहता है।