देव तथा नारकियों के संस्कार अगले भव में भी जाते हैं। अतः नरक से आये जीव पुण्य पर्याय में नहीं जाते। तीर्थंकर इसके अपवाद हैं, क्योंकि उन्होंने तीर्थंकर प्रकृति पहले से बांध ली होती है, सो उन्हें तीर्थंकर बनना ही होता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र – 4/21)
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने संस्कार को बहुत महत्वपूर्ण भूमिका दी है।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने संस्कार को बहुत महत्वपूर्ण भूमिका दी है।