सत्संग
एक आदमी सत्संग से हमेशा दूर भागता था, गुरू को आगे आगे के समय देता रहता था । एक दिन वह मर गया, गुरु शमशान घाट पर उसे सत्संग सुनाने लगे ।
लोग हँसने लगे और बोले – मुर्दा क्या सुनेगा ।
गुरू – मुर्दे के बहाने तुम ज़िंदों को सत्संग सुना रहा हूँ ।
ऐसे ही समय निकल जायेगा, समय रहते सत्संग कर लो ।
‘इस धरा का, इस धरा पर सब धरा रह जायेगा ।’
2 Responses
Hum bhi ab sat satsung karenge.
JIWAN SATSANG SE HI TO MHKTA HAI.
JAY JINENDRA.