समर्पण यानि इच्छाओं का अर्पण ।
समर्पण से नदी सागर बन जाती है ।
संसार में समर्पण उसे करें जो विश्वासघात ना करे, वह भी मर्यादा (रिश्तों की) के अंदर ही ;
परमार्थ में, जो मोक्षमार्ग पर आगे बढ़ाये ।
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यह कथन सत्य है कि समर्पण यानी इच्छाओं का अर्पण करना होता है। समर्पण से ही नदी सागर बन जाती है। संसार में समर्पण उसे जो विश्वासघात न करें पर मर्यादा के अंदर होना चाहिए। परमार्थ में,जो मोक्ष मार्ग पर आगे बढाये वहीं सच्चा समर्पण होता है।
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यह कथन सत्य है कि समर्पण यानी इच्छाओं का अर्पण करना होता है। समर्पण से ही नदी सागर बन जाती है। संसार में समर्पण उसे जो विश्वासघात न करें पर मर्यादा के अंदर होना चाहिए। परमार्थ में,जो मोक्ष मार्ग पर आगे बढाये वहीं सच्चा समर्पण होता है।