1 से 3 गुणस्थान में अधर्म क्योंकि सम्यग्दर्शन नहीं है।
शील/ महाव्रत/ अखंड ब्रम्हचर्य, सब द्रव्य संयम, एक जन्म के; सम्यग्दर्शन (भावात्मक) जन्मजन्मांतरों का।
ज्ञान तथा चारित्र का आधार तथा उन्हें शीलवान बनाने वाला सम्यग्दर्शन ही है।
निर्यापक मुनि श्री नियमसागर जी
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मुनि श्री नियमसागर महाराज जी ने सम्यग्दर्शन की परिभाषा बताई गई है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में श्रावक को सम्यग्दर्शन प़ाप्त करने का प़यास करना परम आवश्यक है।
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मुनि श्री नियमसागर महाराज जी ने सम्यग्दर्शन की परिभाषा बताई गई है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में श्रावक को सम्यग्दर्शन प़ाप्त करने का प़यास करना परम आवश्यक है।