सिद्धि
1. मंत्रों की सिद्धि, मन की इच्छाओं की पूर्ति (मिथ्यादृष्टि द्वारा) के लिये ही नहीं,
मन को साधने (एकाग्रता) के लिये/ सम्यग्दृष्टि के लिये भी की जाती है ।
2. विद्या सिद्धि, सचित्त परिग्रह है ।
(मुनियों द्वारा स्वीकार करने पर सम्यग्दर्शन छूट जाता है,
विद्याधर, सम्यग्दर्शन के साथ खूब विद्यायें सिद्ध करते रहते हैं)
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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सिद्धि का अर्थ प्राप्ति या उपलब्धि है,आत्म स्वरूप की प्राप्ति होना होता है, अथवा जीवों के हित की साधना होती है। अतः उक्त कथन सत्य है कि मंत्रों की सिद्धि,मन की इच्छाओं की पूर्ति के लिए ही नहीं होती हैं जिसको करने वाले मिथ्या द्वष्टि होता है। इसके अतिरिक्त मन को साधने यानी एकाग्रता के लिए होना सम्यग्द्वष्टि के लिए की जाती है।
2 विद्या सिद्धी,सचित परिग़ह है। इसको मुनियों द्वारा स्वीकार करने पर सम्यग्दर्शन छूट जाता है जबकि विद्याधर, सम्यग्दर्शन के साथ खूब विद्यायें सिद्ध करते रहते हैं।