हर केन्द्र की परिधि होती है।
और हमारी ?
परिधि वृत्ताकार होती है, किन्तु हम डर कर या रागवश एक दिशा के क्षेत्र को सिकोड़ लेते हैं और द्वेषादि के क्षेत्र को बढ़ा लेते हैं।
वस्तुओं के साथ ऐसा नहीं है; पुराना मोरपंख किताब में वहीं मिलता है, जहाँ वह रखा गया था।
ब्र. डॉ. नीलेश भैया
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ब़ डा़ नीलेश भैया जी ने राग द्वेष को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए राग द्वेष से मुक्त होना परम आवश्यक है।
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ब़ डा़ नीलेश भैया जी ने राग द्वेष को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए राग द्वेष से मुक्त होना परम आवश्यक है।