सुखी / दु:खी
व्यवहार से एक जीव दूसरे जीव को सुखी/ दु:खी कर सकता है, उससे कर्मबंध भी होगा।
निश्चय से सुखी/ दु:खी नहीं कर सकता, ना ही कर्म बंध होगा।
मुनि श्री सुधासागर जी
व्यवहार से एक जीव दूसरे जीव को सुखी/ दु:खी कर सकता है, उससे कर्मबंध भी होगा।
निश्चय से सुखी/ दु:खी नहीं कर सकता, ना ही कर्म बंध होगा।
मुनि श्री सुधासागर जी
One Response
मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने सुखी एवं दुखी के लिए उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है!