सुख की चाहना में कोई बुराई नहीं है, पर दु:ख की राह पर चलते हुये, सुख की चाह में विसंगति है ।
ऐसे सुख की चाहना में बुराई है जिससे औरों को दु:ख होता हो/ या जिसका अंत खुद के लिये दुखमय हो, जैसे बच्चों के द्वारा मिट्टी खाने या बड़ों के द्वारा शराब पीने की चाहना ।
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सुख –सुख आल्हाद रुप होता है वह दो प्रकार का होता है,इन्द़िय सुख और अतीइन्द़िय सुख। इन्द्रिय विषयों में प्रीति का अनुभव होना इन्द्रिय सुख होता हैं,
आत्म स्वरुप के अनुभव से उत्पन्न और रागादि विकल्पों से रहित निराकुलता से सुख होता है वह अतीइन्द़िय सुख है।
अतः उक्त कथन सत्य है सुख की चाहना में कोई बुराई नहीं है लेकिन इन्दिंयो के सुख में रहोगे तो हमेशा दुखी होते रहोगे। अतः ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए ताकि दुखी हो सको।
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सुख –सुख आल्हाद रुप होता है वह दो प्रकार का होता है,इन्द़िय सुख और अतीइन्द़िय सुख। इन्द्रिय विषयों में प्रीति का अनुभव होना इन्द्रिय सुख होता हैं,
आत्म स्वरुप के अनुभव से उत्पन्न और रागादि विकल्पों से रहित निराकुलता से सुख होता है वह अतीइन्द़िय सुख है।
अतः उक्त कथन सत्य है सुख की चाहना में कोई बुराई नहीं है लेकिन इन्दिंयो के सुख में रहोगे तो हमेशा दुखी होते रहोगे। अतः ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए ताकि दुखी हो सको।