सुभग / शुभ / यश

नामकर्म….
सुभग (जिसे देखते ही वात्सल्य उत्पन्न हो) जीव विपाकी।
शुभ(सुन्दर शरीर) पुद्गल विपाकी।
यश (जिस कर्म के उदय से पवित्र गुणों की ख्याति होती है) जीव-विपाकी।

गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

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6 Responses

  1. मुनि श्री क्षमासागर महाराज जी का उपरोक्त कथन सत्य है कि यश कीर्ति नामकर्म के उदय से पवित्र गुणों की ख्याति होती है!

  2. ‘सुभग’ aur ‘यश’ to shareer se sambandhit hai na ? To phir, unhe ‘पुद्गल-विपाकी’, kyun nahin kaha ?

    1. शरीर से सम्बंधित नहीं हैं।
      सुभग….शरीर का सुन्दर होना जरूरी नहीं, इसके उदय में फिर भी अच्छा लगता है।
      यश….की feeling जीव ही तो करेगा न!
      ऐसे ही सुभग के उदय का feel जीव करेगा।

  3. शरीर सुन्दर ना भी हो तो भी अच्छा लग सकता है/ वात्सल्य उत्पन्न हो सकता है,
    तो यह शरीर से सम्बंधित हुआ या जीव के साथ एकमेव हुए कर्मों से ?
    जैसे यश कर्म भी जीव विपाकी है।

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