श्वेताम्बर मंदिरों में भी मल्लिकुमार को स्त्री रूप में नहीं दिखाया है । वे भी मानते हैं कि सम्यग्दृष्टि अगले भव में स्त्री पर्याय में नहीं जाता तो मिथ्यादर्शन के साथ तीर्थंकर बनेंगे क्या ?
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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मोक्ष का तात्पर्य समस्त कर्मों से रहित आत्मा की विशुद्ध अवस्था होती है,जब आत्मा कर्म मल कलंक और शरीर को अपने से सर्वथा जुदा कर देता है,तब उसके जो स्वाभाविक अनन्त ज्ञानादि गुण रुप और अत्याव्याध सुख रुप अवस्था उत्पन्न होती है, उसे ही मोक्ष कहा गया है।
जैन धर्म में दिगम्बर आवना में निर्ग्रन्थ मुनि ही मोक्ष मार्ग को अपना कर ही मोक्ष पाने में समर्थ हो सकते हैं। अतः मुनि महाराज का कथन सत्य है श्वेताम्बर आवना में मोक्ष प्राप्त होना सम्भव नहीं हो सकता है, जबकि वह भी मानते हैं कि स.दृष्टि अगले भव में स्त्री पर्याय में नहीं जाता है,तो मिथ्या दर्शन के साथ तीर्थंकर कैसे बन सकते हैं।
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मोक्ष का तात्पर्य समस्त कर्मों से रहित आत्मा की विशुद्ध अवस्था होती है,जब आत्मा कर्म मल कलंक और शरीर को अपने से सर्वथा जुदा कर देता है,तब उसके जो स्वाभाविक अनन्त ज्ञानादि गुण रुप और अत्याव्याध सुख रुप अवस्था उत्पन्न होती है, उसे ही मोक्ष कहा गया है।
जैन धर्म में दिगम्बर आवना में निर्ग्रन्थ मुनि ही मोक्ष मार्ग को अपना कर ही मोक्ष पाने में समर्थ हो सकते हैं। अतः मुनि महाराज का कथन सत्य है श्वेताम्बर आवना में मोक्ष प्राप्त होना सम्भव नहीं हो सकता है, जबकि वह भी मानते हैं कि स.दृष्टि अगले भव में स्त्री पर्याय में नहीं जाता है,तो मिथ्या दर्शन के साथ तीर्थंकर कैसे बन सकते हैं।