लम्बे अरसे के बाद किसी के दुर्व्यवहार का स्मरण आने से अनंतानुबंधी कषाय नहीं,
स्मरण के साथ यदि दुर्भावना आयी तो तीव्र बंध होगा,
कषायानुबंध या प्रेमानुबंध नहीं होना चाहिये ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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बंध-कर्म आत्मा के साथ एक क्षेत्रावगाह होना होता है।
कषाय—आत्मा में होने वाले क़ोधदि रुप को कहते हैं, ये चार कषाये होती हैं।अतः यह कथन सत्य है कि लम्बे अरसे के बाद किसी के दुर्व्यवहार का स्मरण आने से अनंतानुबंधी कषाय नहीं होती है लेकिन स्मरण के साथ यदि दुर्भावना आयी तो त़ीव बंध होगा।
अतः कषायानुबंध या प़ेमानुबंध कभी नहीं होना चाहिए।
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बंध-कर्म आत्मा के साथ एक क्षेत्रावगाह होना होता है।
कषाय—आत्मा में होने वाले क़ोधदि रुप को कहते हैं, ये चार कषाये होती हैं।अतः यह कथन सत्य है कि लम्बे अरसे के बाद किसी के दुर्व्यवहार का स्मरण आने से अनंतानुबंधी कषाय नहीं होती है लेकिन स्मरण के साथ यदि दुर्भावना आयी तो त़ीव बंध होगा।
अतः कषायानुबंध या प़ेमानुबंध कभी नहीं होना चाहिए।