पुण्यात्मा / पापात्मा
मुनि भी अपने को पापात्मा मानते हैं, तभी पुण्यात्मा बनने की प्रक्रिया में संलग्न रहते हैं ।
पर अपने आपको पापात्मा पहचानने वाला, (इस अपेक्षा से) पुण्यात्मा भी है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
मुनि भी अपने को पापात्मा मानते हैं, तभी पुण्यात्मा बनने की प्रक्रिया में संलग्न रहते हैं ।
पर अपने आपको पापात्मा पहचानने वाला, (इस अपेक्षा से) पुण्यात्मा भी है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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मनुष्य जब अपनी आत्मा की पहिचान कर लेता है तभी अपने पाप के विकार समझने लगता है। अतः पापात्मा से पुण्यात्मा की ओर बढने के लिए अपने पाप कर्मों के झड़ने के लिए साधना में लीन हो जाते हैं।अतः मुनि भी पापत्मक से पुण्यात्मक की प़किया में लीन हो जाते हैं।