स्वाध्याय

“स्वस्य अध्याय: स्वाध्याय:”
जहाँ अपना निजी आत्मतत्व पुष्ट होता है/ विकसित होता है, ऐसे शास्त्र पठन का नाम “स्वाध्याय” है।
स्वाध्याय का अर्थ मात्र लिखना-पढ़ना ही नहीं है, बल्कि आलस्य/ असावधानी के त्याग का नाम स्वाध्याय है।
गुरु-निर्देशन में किया गया स्वाध्याय, वैराग्यता प्रदान कर, पर्त दर पर्त चेतना का शोधन करता है।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

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4 Responses

  1. स्वाध्याय का तात्पर्य आत्महित की भावना से सत शास्त्र का वाचन करना या उपदेश आदि होना होता है। आलस्य छोड़कर ज्ञान की आराधना में तत्पर रहना स्वाध्याय नाम का तप है। आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने उदाहरण दिया है वह पूर्ण सत्य है। अतः गुरुओं के निर्देशन में किया गया स्वाध्याय,वैराग्यता प़दान करता है और चेतना का शोधन करता है।

    1. गुरु के सानिध्य में किये गये स्वाध्याय से चेतना के ऊपर पड़ीं Layers एक-एक करके हटती जाती हैं।

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