हिंसा – सैनिक/राज्यविस्तार

सैनिक की हिंसा संकल्पी नहीं, विरोधी होती है । अणुव्रती के लिए भी इसका निषेध नहीं है ।
राज्यविस्तार की… संकल्पी नहीं, आरंभिक होती है, जैसे व्यापार का विस्तार ।

मुनि श्री सुधासागर जी

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  1. हिंसा का मतलब प़माद के वशीभूत होकर जीव के प़ाण का वियोग करना या पीड़ा पहुंचाना होता है। इसमें चार प्रकार की हिंसा होती है, संकल्पी,आरम्भी, विरोधी और उधोगी।इस प्रकार हिंसा भी दो प्रकार की होती है, द़व्य हिंसा और भाव हिंसा। द़व्य हिंसा में मारना, पीड़ा पहुंचाना, इसके अतिरिक्त भाव हिंसा में मारने या पीड़ा का विचार करना भाव हिंसा होती है।
    अतः उक्त कथन सत्य है कि सैनिक की हिंसा संकल्पी नहीं बल्कि विरोधी होती है। अणुव्रती के लिए भी इसका निषेध नहीं है। राज्य विस्तार की संकल्पी नहीं बल्कि आरम्भिक होती है, जैसे व्यपार का विस्तार होना। सैनिक राष्ट्र रक्षा के लिए करते हैं जो विरोधी हिंसा कहा गया है।

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