ह्रीं
ह्रीं का प्रयोग संसार और परमार्थ दोनों क्षेत्र में होता है, यह असीम है, बाकी सीमित ।
इसमें सिर्फ “ह” का प्रयोग है, अन्य बीजाक्षरों में 2-3 अक्षरों का जैसे “अर्हम्” ।
इसे दूसरे बीजाक्षरों के साथ भी प्रयोग करते हैं जैसे “ॐ ह्रीं अर्हम्” आदि में ।
मुनि श्री सुधा सागर जी
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हीं –यह चौबीस तीर्थंकर वाचक बीज पद है। यह एकाक्षरी मंत्र है।पदस्थ ध्यान में इसका उपयोग होता है, इसे मायाबीज भी कहते हैं। अतः उक्त कथन सत्य है कि हीं का प्रयोग संसार और परमार्थ दोनों क्षेत्र में होता है,यह असीम है, बाकी सीमित है। इसमें एक अक्षर का ही प्रयोग किया गया है, अन्य बीजाक्षरो में 2-3अक्षरो का जैसे अर्हम। अतः दूसरे बीजाक्षरों के साथ भी प़योग करते हैं जैसे ॐ हीं अर्हम आदि में भी।