ज़िंदगी
हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली,
कुछ यादें मेरे संग ….. पांव पांव चलीं !
सफ़र जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ,
वो ज़िंदगी ही क्या… जो छाँव छाँव चली !!
(श्री तुषारभाई- मुम्बई)
हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली,
कुछ यादें मेरे संग ….. पांव पांव चलीं !
सफ़र जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ,
वो ज़िंदगी ही क्या… जो छाँव छाँव चली !!
(श्री तुषारभाई- मुम्बई)