Month: December 2009

निंदा

आहार तो पांचों इन्द्रियों से होता है, पर मन का प्रिय आहार तो परनिंदा है |

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समर्पण

समर्पण के बाद ही दर्पण दिखता है । मुनि श्री मंगलानंद जी

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त्याग

आपकी ऊंचाई का पता इससे नहीं लगेगा कि आपके पास क्या क्या है, बल्कि इससे लगेगा कि आप क्या क्या छोड़ रहे हो, क्या क्या

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संसार

आजकल की माँयें अभिमन्यु की माँ जैसी हैं जो बच्चों को चक्रव्युह (संसार के) में घुसना तो सिखाती हैं पर निकलना नहीं ।

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विश्वास

शोध तो बोध से ही होता है और बोध विश्वास से। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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अनुकूलता/प्रतिकूलता

अनुकूलताओं में यदि ज्यादा खुश हुये तो प्रतिकूलताओं में ज्यादा दुःखी होंगे ही । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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भीष्म पितामह

100 जन्म पहले खेल खेल में एक सांप को ड़ंड़े से घुमाते घुमाते झाड़ी में काँटों पर गिरा दिया था । यही उनके तीरों की

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गुरू

दवा की शीशी पर पूरे Ingredients , बीमारी का नाम तथा लेने की विधि लिखी रहती है, फिर  भी Under Direction Of Doctor लिखा जाता

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मंगल आशीष

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