Day: February 25, 2010

घ्रणा

आचार्य श्री दुसरे मुनिराजों के साथ शौच के लिये जाते थे वहां पर कचड़े का ढ़ेर था और उससे बहुत दुर्गंध आती थी । मुनिराजों

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तिर्यंचायु बंध

विपरीत मार्ग उपदेश, मायाचारी, 3 शल्य ( मिथ्यात्व, माया और निदान ), मरण समय आर्तध्यान से । कर्मकांड़ गाथा : – 805

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मंगल आशीष

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February 25, 2010