Day: March 20, 2010

समता

मुर्दा ड़ूबता नहीं, ड़ूबता तो ज़िंदा ही है । क्योंकि मुर्दा के समता भाव है और ज़िंदा छटपटाता है, अहंकारी है और कर्ता की भावना

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संयमासंयम

संयमासंयम वालों में बहुभाग तिर्यंचों का होता है । आचार्य श्री विद्यासागर जी (श्री आर्जव सागर जी )

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मंगल आशीष

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March 20, 2010