Day: March 30, 2010

मोह

स्नेह के संसर्ग (तेल) के कारण ही तिल को घानी में पिलना पड़ता है ।

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कर्म-प्रकृति

जो कर्म-प्रकृतियां आगामी भव में उदय योग्य नहीं होतीं, उनका वर्तमान भव में बंध नहीं होता । जैसे लब्धिपर्याप्त तिर्यंच को देवगति, गत्यानुपूर्वी, नरकायु, वैक्रियक

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मंगल आशीष

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March 30, 2010