Month: March 2010
संयमासंयम
संयमासंयम वालों में बहुभाग तिर्यंचों का होता है । आचार्य श्री विद्यासागर जी (श्री आर्जव सागर जी )
वीतरागता
वीतरागता से अन्तर्मुहूर्त में मुक्ति मिल सकती है, आराधना से नहीं । क्योंकि आराधना तो जानने की प्रक्रिया है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
भावना
बारहवीं कक्षा में जब मेरा Dissection करने का नम्बर आता था, तो मैं Side वाले का देख कर काम चला लेता था । पर Exam में ड़र
द्वितीयोपशम सम्यग्दर्शन
द्वितीयोपशम से उतरते समय यदि मिथ्यादर्शन उदय में आ जाये तो सीधे पहले गुणस्थान में आ जाते हैं, अनंतानुबंधी में बाद में जाते हैं ।
समझदार स्वार्थी
जो जानता है कि देने से, ज्यादा मिलता है, वही समझदार स्वार्थी है ।
अरिहंत भगवान
अरिहंत भगवान आहारक भी और अनाहारक भी होते हैं । जैसे Retirement से थोड़ा पहले अपने मकान की Maintenance बंद कर देते हैं, ऐसे ही
कर्मबंध
हर Action का Reaction होता है । सिर्फ सिद्ध भगवान का Action ही होता है, वो भी ऊपर जाने का । जैसे फुटबाल में से
थोथी समृद्धि
सिक्कों की आवाज ज्यादा आती है, नोटों की नहीं । (धर्मेंद्र) सिक्कों में भी चांदी के सिक्कों की कम, सोने के सिक्कों की और भी
सत्त्व
जिसकी सत्ता पाई जाती है, उसे सत्त्व कहते हैं । कर्मकांड़ गाथा : – 342
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