Month: March 2010
स्वभाव
बत्तीस दांतों में से एक के गिरते ही जीभ बार-बार उसी पर जाती है । हमारा स्वभाव कमी को देखने का ही है |
उपशम
उदय, उदीरणा, उत्कर्षण, अपकर्षण, परप्रकृति-संक्रमण, स्थिति-कांड़क घात, अनुभाग-कांड़क घात के बिना ही कर्मों के सत्ता में रहने को उपशम कहते हैं । कर्मकांड़ गाथा :
देवता
देवताओं का Roll बैंक मैनेजर जैसा होता है । उनके पास Over Draft की Power होती है, Temporarily वे आपके Account में जो पैसा बाद
लेश्या
जो कर्मों से आत्मा को लिप्त करती है । सयोग-केवली, के शुक्ल लेश्या होती है क्योंकि उनके साता कर्म का बंध होता रहता है, हालांकि
प्रभावित/प्रकाशित
किसी से प्रभावित मत हो, प्रकाशित हो; ताकि आपके जीवन का अंधकार समाप्त हो जाये । शब्द प्रभावित करते हैं । आचरण प्रकाशित करता है
मध्यलोक
लोक की 14 राजू ऊंचाई में से 7 राजू अधोलोक, 7 राजू ऊर्धलोक, तो मध्यलोक कितना ? मध्यलोक 1 लाख चालीस योजन ऊंचा है ।
भगवान
भगवान हमारे जीवन में तो है पर अनुमान में है, अनुभव में नहीं । इसलिये पूजापाठ सब बोझ हैं । यात्रा अनुभूति की है ।
केवली
समवसरण में जो केवली आते हैं वे तीर्थंकरों को नमोस्तु नहीं किया करते हैं, क्योंकि उनके मोहनीय कर्म समाप्त हो चुका होता है । जिज्ञासा
दुःख
एक दुःखी आदमी देवता के पास जाकर बहुत दुःखी हुआ, उसकी शिकायत थी कि इस दुनिया में सबसे ज्यादा दुःख मुझे ही क्यों मिले हैं
तीर्थंकर
तीर्थंकर के अवधिज्ञान जन्म से होता है । विदेह क्षेत्र में दो और तीन कल्याणक वाले तीर्थंकरों के तीर्थंकर-प्रकृति बंधने के समय से होता है
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