Month: April 2010

कर्मों का स्वभाव

जब मेघनाथ गर्भ में थे, तब रावण ने ज्योतिषी से पूछा – यह बच्चा मृत्यु पर विजयी कैसे होगा  ? ज्योतिषी ने कहा – जब

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विक्रिया

  विविध करने का नाम विक्रिया है । कल्पातीत देवों में एकत्व विक्रिया ही होती है । तत्वार्थ सुत्र टीका – पं. श्री कैलाशचंद्र जी

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नियम

नियम तो सब लोग लेते हैं – पर ‘किंतु’ ‘परन्तु’ लगाकर । नियम मैं निभवा दूंगा, ‘किंतु’ ‘परन्तु’ तुम निभालो । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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श्रवण इंद्रिय

इंद्रियों में सबसे हितकारी – श्रवण इंद्रिय । यही उपदेश प्राप्त कर हित/अहित का भेद करता है । रसना भी उपदेश श्रवण इन्द्रिय से सुनकर

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चोर

दो लोगों ने बराबर की Tax की चोरी की, एक के घर Raid पड़ गयी, पेपर्स पकड़े गये , सज़ा मिल गयी । दुसरे ने

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मन

मन को इंद्रिय क्यों नहीं, अनिंद्रिय क्यों कहा है ? मन इंद्रिय – धर्म वाला नहीं है । मन का विषय अनियत है, सिर्फ निमित्त

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क्रोध

क्रोध Control करने के गुर :- Postponeकरें । गहरी सांस लें । शीशा देखें – आप उस समय कैसे लगते हैं । ठंडा पानी पीयें

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इंद्रिय

नामकर्म से रची, वह इंद्रिय है, आत्मा का लिंग इंद्रिय है । आत्मा कर्मों से मलिन है इसलिये पदार्थों को ग्रहण करने में असमर्थ है,

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समता / भाग्य

श्री दुग्गल जी दिल्ली में बैंक के वरिष्ठ अधिकारी थे। उनको कैंसर हो गया और बम्बई इलाज के लिये आते थे। अस्पताल वालों ने विदेश

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अंग/उपांग

अंग/उपांग को इंद्रियों में क्यों नहीं लिया ? जो उपयोग में आए वह इंद्रिय है, अंग/उपांग तो क्रियाओं के साधन हैं । तत्वार्थ सुत्र टीका

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मंगल आशीष

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April 15, 2010