Month: June 2010

शुक्लध्यान

क्षपक श्रेणी की अपेक्षा – पहला शुक्लध्यान – दसवें गुणस्थान तक होता है, ———————-इसमें मोहनीय कर्म का नाश दसवें गुणस्थान के अंत में हो जाता

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Friendship

“If friendship is your weakest point, then you are the strongest person in the world”….. Mr. Abraham Lincoln

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Faith

Faith in God won’t make the mountain smaller, but make climbing easy.

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अपर्याप्तक

अपर्याप्तक अवस्था तो सबके होती है तो क्या सबके पाप प्रकॄति होगी ? अपर्याप्तक अवस्था दो प्रकार की होती है। 1. – लब्धि अपर्याप्तक –

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संहनन

दमोह की एक व्रती ने बुराई ना करने का नियम ले लिया, पर बहू विपरीत स्वभाव की आई, दिमाग की नस फट गई, संहनन कम

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उपयोग

एक व्यक्ति ने जिन्न सिद्ध कर लिया । पर जिन्न की शर्त थी, कि काम ना मिलने पर वह मालिक को खा जायेगा । यहां

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भाव

“मिथ्यात्व” औदयिक भाव में लिया गया है, जबकि “सम्यग्मिथ्यात्व” तथा “सम्यग्प्रकृति” क्षयोपशमिक भाव में आते हैं, क्योंकि दोनौं में ही “समयक्त्व” है, जो क्षयोपशम से

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आत्मदर्शन

दर्पण में साफ देखना चाहते हो तो :- उसे साफ रखना होगा यानि व्यसन रहित । स्थिर रहे यानि कषाय रहित । अनावरित रहे यानि

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मौन

मौन रखना भी सत्य बोलना है – कम से कम खाते समय तो मौन रहें। मुनि श्री आर्जवसागर जी

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अनुकम्पा

प्रश्न :- नरक में “उपाय-धर्मध्यान” नहीं होता, फिर सम्यग्दर्शन प्रकट होने के लिये “अनुकम्पा” कैसे आती है ? उत्तर :- “अनुकम्पा” बाह्य लक्षण है, आवश्यक

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मंगल आशीष

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June 20, 2010