Month: August 2010
गुरू
गुरू कुतुबनुमा (Compass) है, हमें दिशा दिखाता है । क्षु. श्री गणेश वर्णी जी
निगोदिया जीव
बादर निगोदिया – निगोद से निकल कर, मनुष्य बनकर मोक्ष जा सकते हैं । (जैसे भरत चक्रवर्ती के पुत्र) सूक्ष्म निगोदिया – मनुष्य बनकर, पांचवें
कर्म क्षय
भगवान की भक्ति से कर्म कटते हैं, भगवान खुद कर्म नहीं काटते । श्री लालमणी भाई
चतुर्थ-गुणस्थान का जघन्य काल
प्रश्न : चतुर्थ-गुणस्थान का जघन्य काल कितना होता है ? उत्तर : चतुर्थ-गुणस्थान का जघन्य काल क्षुद्रभव से भी कम होता है । पं.
परोपकार
गुलाब से पूछा – जब तुमको ड़ाली से तोड़ते हैं, तो तकलीफ नहीं होती ? गुलाब – होती है, पर जब याद आता है कि
श्वासोच्छ्वास का काल
जघन्य श्वासोच्छ्वास का काल एकेन्द्रिय जीवों के होता है, उत्कृष्ट श्वासोच्छ्वास सर्वार्थसिद्धि के देवों के होता है, उत्कृष्ट काल, जघन्य से संख्यात गुणा होता है
नि:कांक्षित
जब वांक्षा नहीं, तो वांक्षा-जन्य कर्म-बंध भी नहीं होगा, किन्तु पूर्व-कर्मों की निर्जरा होगी । आचार्य श्री विद्यासागर जी (समयसार-245 )
लाज़बाब
जो दूसरे को ज़बाब नहीं देता. वह लाज़बाब है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
निर्विचिकित्सा
घृणा न होने से तथा अपितु वस्तु के स्वरूप को ध्यान रखने से कर्म-बंध नहीं होता, पर निर्जरा होती है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
रक्षा बंधन
1. सीमा बहन का भाई के लिये पत्र – “………. इस राखी का अर्थ धर्म रक्षा से है, ऐसे ही आप धर्म से सबकी रक्षा
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