Month: November 2019

स्वाध्याय

स्वाध्याय को परम-तप, ज्ञान या पढ़ने की अपेक्षा से नहीं कहा, बल्कि उसको आचरण में उतारने से वह परम-तप बनता है । मुनि श्री प्रमाणसागर

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शुद्धता

शुद्धता तो होती है विचारों में, आदमी कब पवित्र होता है ! फूलों में भी कीड़े पाये जाते हैं, पत्थरों में भी हीरे पाये जाते

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पुरुषार्थ

पुरुषार्थ घातिया कर्मों पर, उसमें भी विशेष रूप से मोहनीय पर काम करता है । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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इंद्र

100 इंद्रों में प्रतीन्द्रों को भी शामिल किया जाता है । मुनि श्री सुधासागर जी

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आज्ञा

आज्ञा-विचय यदाकदा, आज्ञा-सम्यग्दर्शन लगातार, जब तक सम्यग्दर्शन रहता है, तब तक । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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रक्षक देव

रक्षक देव अपने भक्तों की रक्षा नहीं बल्कि भगवान के भक्तों की रक्षा करते हैं क्योंकि वे भगवान के अंगरक्षक हैं (भगवान के परिवार की

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ग्रह और कर्म

ग्रह अच्छा बुरा समय लाते नहीं, बल्कि उनकी ओर इशारा करते हैं । अच्छा बुरा समय तो कर्मों से ही आता है । मुनि श्री

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मंगल आशीष

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