Month: June 2021
यत्नाचार/वीर्याचार
यत्नाचार = ध्यान पूर्वक यत्न वीर्याचार = यत्नाचार को Support करने/उसे ताकत देने के लिये । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
वीर्याचार
ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चरित्राचार, तपाचार के बाद वीर्याचार इसलिये लिया गया है ताकि चारों निर्दोष रहें । वीर्याचार उनमें Extra Fource भरता है जैसे दर्शनाचार में
कुपात्र / सुपात्र
सेवा से तो पुण्य और आनंद दोनों मिलते हैं, पर कुपात्र की करने से दुर्गुण और सुपात्र की से सदगुण आने की संभावना रहती है
सहस्त्रकूट
सहस्त्रकूट जिनालयों में प्रतिमाओं पर चिन्ह नहीं होते, वे अनंत चौबीसीयों को दर्शाती हैं । भगवान के शरीर के 1008 चिन्हों के प्रतीक स्वरूप ।
प्रभु-कृपा
प्रभु के दरबार में कहते हो झोली भर दो, जबकि कहना चाहिये – झोली छुड़ा दो । आचार्य श्री विद्यासागर जी
तीर्थंकर / पुरुष
भूतकालीन चौबीसी में 3 नाम स्त्रीयों जैसे लगते हैं जैसे “भानुमति”, पर यहां पर “मति” से बुद्धि का तात्पर्य है – भानु* जैसी बुद्धि ।
भलाई की उम्र
चाहे कितनी भी भलाई का काम कर लो… उस भलाई की उम्र, सिर्फ….! अगली गलती होने तक ही है…!! (सुरेश)
सहायता
सहायता आदि शुभकर्म गृहस्थ अवस्था में ही कर सकते हो, सो कर लो ! मुनि बनने के बाद अपने कमण्डल का पानी भी प्यासे को
जरा / अजर / नजर
जरा* न चाहूँ, अजर** बनूँ, नजर*** चाहूँ । आचार्य श्री विद्यासागर जी * रोग/थोड़ा भी ** निरोगी *** गुरुकी/सम्यग्दृष्टि
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