Month: March 2024
लब्धियाँ
श्री सम्यक्त्वसार शतक (आचार्य श्री विद्यासागर जी के गुरु आचार्य श्री ज्ञानसागर जी रचित) में उदाहरण दिया है… मोक्ष जाने वाली ट्रेन में → 1.पटरी…
दिल / दिमाग
दिमाग को खूब पढ़ाना, पर दिल को अनपढ़ ही रखना; ताकि भावनाओं को समझने में हिसाब-किताब न करे। (एकता- पुणे)
समय
एक समय → निश्चय काल की अपेक्ष….. द्रव्य। व्यवहार काल की अपेक्षा… पर्याय। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जिज्ञासा समाधान)
गुरु
शिक्षक जो सिखाये। टीचर जो पढ़ाये। गुरु जो चलाये। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
गणधर के शिष्य
गणधर के शिष्य “गुणधर” (गुणों के धारक)। उत्तम → सम्यक्चारित्र के धारक। मध्यम → सम्यग्दर्शन के धारक। जघन्य → सिर्फ नाम के धारक जैसे आम
स्वभाव
दो प्रकार का… 1. आत्मा का स्वभाव… फलों को खाकर दयापूर्वक गुठली बो देना। 2. वस्तु का स्वभाव…..फलों के पेड़ फल पैदा करते हैं अपनी
भाव
किसी के अधिक से अधिक कितने भाव रह सकते हैं ? सामान्यत: 4 ( औदायिक, पारिणामिक, क्षयोपशमिक, औपशमिक या क्षायिक), लेकिन क्षायिक सम्यग्दृष्टि जब उपशम
शरीर / आत्मा
क्या हम ऐसी जगह को छोड़ना नहीं चाहेंगे जहाँ सड़न/ बदबू आना शुरू हो रही हो ? यदि हाँ, तो आत्मा मरते हुए शरीर को
आत्मा
निश्चय से आत्मा के अनंत/ अनेक गुणों को जानना, तथा व्यवहार से उन गुणों को जीवन में उतारना। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
खुशनसीब
खुशनसीब वह नहीं जिसका नसीब अच्छा है, बल्कि वह जो अपने नसीब को अच्छा मानता है। (महेन्द्र जैन- नयाबाजार मंदिर)
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