दूसरे के बारे में मत सोचो, यह सूत्र है कषायों को कम करने के लिए ।
पंच परमेष्ठी को लो या सामान्य जीवों को लो लेकिन साधर्मीओं को अपने ध्यान का विषय मत बनाओ ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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4 Responses
कषाय का मतलब आत्मा में होने वाले क़ोधादि रुप कलुषता को कहते हैं। यह चार प्रकार के होते हैं क़ोध मान माया और लोभ। प़शम का मतलब पंचेन्द्रियों के विषयों में तथा तीव़ क़ोधादि में मन को नहीं जाने देना प़शम भाव है,यह सम्यग्द्वष्टि का एक गुण होता है।
अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि दूसरे के बारे में मत सोचो,यह सूत्र है कषायों को कम करने के लिए। अतः पंच परमेष्ठि को लो या सामान्य जीवों को लो लेकिन साधार्मीओं को अपने ध्यान का विषय मत बनाओ।
पंच परमेष्ठी रास्ता दिखाते हैं/ प्रेरणा देते हैं,
अन्य जीव, दया के भाव में निमित्त;
जबकि साधर्मी से प्रतिस्पर्धा, ईर्ष्या आदि होने की सम्भावना बहुत रहतीं हैं ।
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कषाय का मतलब आत्मा में होने वाले क़ोधादि रुप कलुषता को कहते हैं। यह चार प्रकार के होते हैं क़ोध मान माया और लोभ। प़शम का मतलब पंचेन्द्रियों के विषयों में तथा तीव़ क़ोधादि में मन को नहीं जाने देना प़शम भाव है,यह सम्यग्द्वष्टि का एक गुण होता है।
अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि दूसरे के बारे में मत सोचो,यह सूत्र है कषायों को कम करने के लिए। अतः पंच परमेष्ठि को लो या सामान्य जीवों को लो लेकिन साधार्मीओं को अपने ध्यान का विषय मत बनाओ।
“साधर्मीओं को अपने ध्यान का विषय मत बनाओ” se kya aashay hai ।
पंच परमेष्ठी रास्ता दिखाते हैं/ प्रेरणा देते हैं,
अन्य जीव, दया के भाव में निमित्त;
जबकि साधर्मी से प्रतिस्पर्धा, ईर्ष्या आदि होने की सम्भावना बहुत रहतीं हैं ।
Okay.