बेईमानी/अधर्म
हम ईमानदारी निभा नहीं पाते, सो ईमानदारी की परिभाषा ही अपने अपने अनुसार बदल लेते हैं ।
धर्मानुसार चल नहीं पाते, सो धर्म का रूप अपने अपने अनुसार बदल लेते हैं ।
चिंतन
हम ईमानदारी निभा नहीं पाते, सो ईमानदारी की परिभाषा ही अपने अपने अनुसार बदल लेते हैं ।
धर्मानुसार चल नहीं पाते, सो धर्म का रूप अपने अपने अनुसार बदल लेते हैं ।
चिंतन
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2 Responses
Bahut khub…..
Aaj ke jamane main dharm or imanadari ke matalab he badal gaye hai,
apni apni anukulta ke hiasab se nai?