रक्षाबंधन

संसार के हर खेल और कार्य में कुछ नियम/बंधन होते हैं,
बंधन के बिना जीवन चलता नहीं है ।
अपने को बंधन में रखना उत्तम है,
दूसरों को रखना या दूसरों का बंधन मानना गुलामी/मोह है ।
या तो हम इंद्रियों और मन को बांध कर रखें या उनके बंधन में रह कर उनके गुलाम बन जायें ।

मुनि श्री कुन्थुसागर जी

Share this on...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives
Recent Comments

August 21, 2013

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930