अनुजीवी गुण, जो सिर्फ आत्मा में हर समय पाये जायँ ।
प्रतिजीवी, ये घातिया कर्मों के क्षयोपशम/क्षय से होते हैं ।
साधारण-प्रतिजीवी गुण जैसे प्रदेशत्व आदि सब द्रव्यों में पाये जाते हैं ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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3 Responses
अनुजीवी गुण- -जो द़व्य में विद्यमान भाव रुप गुणों को कहते हैं जैसे वीणा के तार संभालते समय ही जान लेना कि इसके द्वारा यह राग बजाया जावेगा।
प़थिवी जीव- -जो जीव पृथिवी में उत्पन्न होने के लिए विग्रह गति में जा रहा है उसे कहते हैं।
अतः उक्त कथन सत्य है कि अनुजीवी गुण जो सिर्फ आत्मा में हर समय पाये जायें।
प़तिजीवी,यह घातिया कर्मो क्षयोपशम और क्षय से होते हैं। साधारण-प़तिजीवी गुण जैसे प़देशतत्व आदि सभी द़़व्यो में पाये जाते हैं।
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अनुजीवी गुण- -जो द़व्य में विद्यमान भाव रुप गुणों को कहते हैं जैसे वीणा के तार संभालते समय ही जान लेना कि इसके द्वारा यह राग बजाया जावेगा।
प़थिवी जीव- -जो जीव पृथिवी में उत्पन्न होने के लिए विग्रह गति में जा रहा है उसे कहते हैं।
अतः उक्त कथन सत्य है कि अनुजीवी गुण जो सिर्फ आत्मा में हर समय पाये जायें।
प़तिजीवी,यह घातिया कर्मो क्षयोपशम और क्षय से होते हैं। साधारण-प़तिजीवी गुण जैसे प़देशतत्व आदि सभी द़़व्यो में पाये जाते हैं।
“साधारण-प्रतिजीवी गुण जैसे प्रदेशत्व” kya “घातिया” कर्मों के क्षयोपशम/क्षय से hota hai?
घातिया कर्मों के क्षयोपशम करने से ही, क्षय से तो प्रदेश समाप्त ही हो जायेंगे ।