कृत-कृत वेदक उसे कहते हैं जिसने मिथ्यात्व और सम्यक् मिथ्यात्व का क्षय कर लिया हो और सम्यक् प्रकृति के बहुभाग का भी क्षय कर लिया हो, तभी आयु पूर्ण हो जाय ।
यदि बंधायुष्क है तो पूर्व बंधी पर्याय में जायेगा अन्यथा देव पर्याय में ही जायेगा ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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कृत कृत का मतलब स्वयं अपने द्वारा किया कार्य कहलाता है। वेदक का मतलब दर्शन मोहनीय कर्म की सम्यक्तव् प़कृति के उदय से जो तत्वार्थ श्रद्वान होता है। अतः मुनि श्री सुधासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि कृत कृत वेदक उसे कहते हैं जिसने मिथ्यात्व और सम्यग् मिथ्यात्व का क्षय कर लिया हो और सम्यक् प़कृति के बहुभाग का भी क्षय कर लिया हो,तभी आयु पूर्ण हो जाय। यदि बंधायुष्क है तो पूर्व बंधी पर्याय में जावेगा अन्यथा देव पर्याय में ही जायेगा।
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कृत कृत का मतलब स्वयं अपने द्वारा किया कार्य कहलाता है। वेदक का मतलब दर्शन मोहनीय कर्म की सम्यक्तव् प़कृति के उदय से जो तत्वार्थ श्रद्वान होता है। अतः मुनि श्री सुधासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि कृत कृत वेदक उसे कहते हैं जिसने मिथ्यात्व और सम्यग् मिथ्यात्व का क्षय कर लिया हो और सम्यक् प़कृति के बहुभाग का भी क्षय कर लिया हो,तभी आयु पूर्ण हो जाय। यदि बंधायुष्क है तो पूर्व बंधी पर्याय में जावेगा अन्यथा देव पर्याय में ही जायेगा।