विग्रहगति में पर्याप्तक तथा अपर्याप्तक नामकर्म वाले जीवों के इन कर्मों का उदय नहीं होता है । जन्मस्थान पर पहुँच कर यथायोग्य नामकर्म का उदय होता है ।
पं.रतनलाल बैनाड़ा जी
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4 Responses
विग़हगति में विग़ह का अर्थ शरीर है। पूर्व भव के शरीर को छोड़कर नवीन शरीर को ग़हण करने के लिए जीव जो गमन करता है, उसे विग़हगति कहते हैं,यह दो प्रकार की होती है मोड़े और बिना मोड़े वाली।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि विग़हगति में पर्याप्तक तथा अपर्याप्तक नामकर्म का उदय नहीं होता है, जबकि जन्म स्थान पर पहुंच कर यथायोग्य नामकर्म का उदय होता है।
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विग़हगति में विग़ह का अर्थ शरीर है। पूर्व भव के शरीर को छोड़कर नवीन शरीर को ग़हण करने के लिए जीव जो गमन करता है, उसे विग़हगति कहते हैं,यह दो प्रकार की होती है मोड़े और बिना मोड़े वाली।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि विग़हगति में पर्याप्तक तथा अपर्याप्तक नामकर्म का उदय नहीं होता है, जबकि जन्म स्थान पर पहुंच कर यथायोग्य नामकर्म का उदय होता है।
Par yeh karm, “satta” me to rehte hain, na?
सही,
वरना जन्म स्थान पर पहुंचते ही उदय में कैसे आजायेंगे !
Okay.