मनुष्यनी
भाव-वेद की अपेक्षा जिनमें स्त्री-वेद पाया जाता है, चाहे द्रव्य से मनुष्य।
इनमें सारी ऋद्धियाँ नहीं होती/ कुछ संयम उत्पन्न नहीं होते।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
भाव-वेद की अपेक्षा जिनमें स्त्री-वेद पाया जाता है, चाहे द्रव्य से मनुष्य।
इनमें सारी ऋद्धियाँ नहीं होती/ कुछ संयम उत्पन्न नहीं होते।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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4 Responses
मुनि महाराज जी का कथन सत्य है कि भाव वेद की अपेक्षा जिनमें स्त्री वेद पाया जाता है, चाहे द़व्य से पुरुष हों!! इसमें सारी रिद्धि नहीं होती हैं, कुछ संयम उत्पन्न नहीं होते हैं!
‘मनुष्यनी’ ko jaan paana, kya ‘avadhi-gyaani’ ka vishay hai ?
हाँ, अवधिज्ञानी कर्म वर्गणाओं को देखकर पता लगा सकते हैं।
Okay.