सुखी / दु:खी
व्यवहार से एक जीव दूसरे जीव को सुखी/ दु:खी कर सकता है, उससे कर्मबंध भी होगा।
निश्चय से सुखी/ दु:खी नहीं कर सकता, ना ही कर्म बंध होगा।
मुनि श्री सुधासागर जी
व्यवहार से एक जीव दूसरे जीव को सुखी/ दु:खी कर सकता है, उससे कर्मबंध भी होगा।
निश्चय से सुखी/ दु:खी नहीं कर सकता, ना ही कर्म बंध होगा।
मुनि श्री सुधासागर जी
M | T | W | T | F | S | S |
---|---|---|---|---|---|---|
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 |
8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 |
15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 |
22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 |
29 | 30 | 31 |
One Response
मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने सुखी एवं दुखी के लिए उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है!