सम्यक्-मिथ्यात्व गुणस्थान

तीसरे गुणस्थान में 3 ज्ञान, 3 अज्ञान मिश्र हो जाते हैं जैसे दालमोंठ में न दाल का स्वाद है, न मोठ का ही।
पहले तथा दूसरे गुणस्थान की तरह विपरीतता नहीं है, ज्ञान व श्रद्धा मिश्ररूप हैं/ दोनों रूपता है। इसीलिये इसका दूसरा नाम है…. “जात्यंतर सर्वघाती प्रकृति”।
इसमें ज्ञान और श्रद्धा जात्यंतर (भिन्न जाति) प्रकृति की होती है।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड गाथा- 302)

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