धर्म
धर्म अंदर से भरता है। प्राय: यह भ्रम रहता है कि बाहर से भरता है इसीलिये धर्म पर से विश्वास घट रहा है।
धर्म (सार्वभौमिक है) और धार्मिक क्रियायें अलग-अलग हैं। भगवान को देखें पूर्ण अभावों में भी पूर्ण प्रसन्न।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
धर्म अंदर से भरता है। प्राय: यह भ्रम रहता है कि बाहर से भरता है इसीलिये धर्म पर से विश्वास घट रहा है।
धर्म (सार्वभौमिक है) और धार्मिक क्रियायें अलग-अलग हैं। भगवान को देखें पूर्ण अभावों में भी पूर्ण प्रसन्न।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
7 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने धर्म का विस्तृत वर्णन किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः धर्म को अपने अन्दर यानी आत्मा स्थापित करना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है। इसके साथ श्रद्धान रखना भी परम आवश्यक है।
‘सार्वभौमिक’ ka kya meaning hai, please ?
सर्वकालिक/ सर्वमान्य/ शाश्वत।
सर्वव्यापी/ सर्वकालिक
‘सर्वकालिक’ ka kya meaning hai, please ?
तीनों कालों में applicable.
Okay.