जो सत्ता, उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य, षटगुणी हानि-वृद्धि रूप हमेशा स्व तथा सब द्रव्यों में वर्तन कराता है, वही काल है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र – 5/22)
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने काल को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है ।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने काल को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है ।