धर्म की विनय

करैया गाँव के बौहरे जी की हवेली मंदिर के सामने थी । उनका वैभव और यश चरम सीमा पर था, लोग अच्छा काम करने जाने से पहले उनका आशीर्वाद लेने आते थे।
कुछ दिनों बाद बौहरे जी अपनी बालकनी में बैठकर इतनी जोर से मंदिर की ओर मुँह करके कुल्ला करते थे कि उसके छींटें मंदिर तक जायें।

थोड़े दिनों बाद उनके हाथ पैर गलने लगे, शरीर से बदबू आने लगी। लोग अच्छा काम करने जाने से पहले यह ध्यान रखने लगे कि कहीं उनका मुँह न दिखाई दे जाये। आज उनकी हवेली खंड़हर पड़ी है। बच्चे खेलने जाते हैं तो उन्हें सिक्के मिल जाते हैं, पर घर वाले उस पैसे को वहीं वापिस फिकवा देते हैं क्योंकि वह ऐसे अभागे आदमी का पैसा घर में रखना भी पसन्द नहीं करते हैं ।

श्री लालमणी भाई

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