Category: 2016

आयुबंध

जघन्य स्थिति – बंध (अंतर्मुहुर्त) संख्यात वर्ष वाले तिर्यंच/मनुष्यों में होती है । तत्वार्थसूत्र टीका – 507 देव/नारकियों के इसीलिये नहीं क्योंकि यह अंतर्मुहुर्त क्षुद्र-भव

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वेदनीय उदय

असाता का उदय उत्कृष्ट 33 सागर (7 नरक), साता का 6 माह (सर्वाथसिद्धि तक में ) ।

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तीर्थंकर बंध

चारों प्रकार के सम्यग्दर्शन (द्वितियोपशम में भी) के साथ तीर्थंकर प्रकृति का बंध हो सकता है ।

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निद्रा/प्रचला

इनका उदय 12 वें गुणास्थान तक होता है पर प्रभाव तो दिखता नहीं है ? प्रमाद के अभाव में कर्मोदय का प्रभाव गौण हो जाता

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मोह/बंध

सिर्फ़ पुदगल के अणुओं में रुक्षता/स्निग्धता होती है । इसलिये (शायद) हम पुदगलों से रति/अरति करते हैं, और किसी द्रव्य से नहीं । न्यूनतम शक्ति

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नोकर्म और निमित्त में अंतर

नोकर्म – कर्म-बंध में सहकारी, निमित्त – व्यापक, कारण – जिसके बिना कार्य न हो, जैसे क्षायिक सम्यग्दर्शन के लिए, केवली के पाद-मूल ।

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प्रदेश/प्रदेशी

प्रदेश – क्षेत्र की इकाई, प्रदेशी – कितना स्थान घेरता/घेर सकता है । जीव असंख्यात प्रदेशी तथा लोक के असंख्यातवें भाग में ही रहता है

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पाप/पुण्य फल

किसी का पुण्य प्रबल है तो आसपास के जीवों के पुण्य की उदीरणा में निमित्त बनता है, पाप पाप की उदीरणा में । ऐसे ही

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संबंध

संयोग संबंध भी दो प्रकार का – 1. प्रत्यक्ष भिन्न – शरीर और मकानादि, 2. अप्रत्यक्ष भिन्न – शरीर और आत्मा ।

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देवों की पर्याय

भवनत्रिक ही एकेंद्रिय हो सकते हैं, 12 वें स्वर्ग तक के तिर्यंच, उसके आगे मनुष्य ही ।

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मंगल आशीष

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