Category: 2019
संक्लेश/विशुद्ध स्थान
यदि आपके भाव 1 से 100 तक परिणमित होते हैं तो 51 से 100 को विशुद्ध और 1 से 50 तक के भावों को संक्लेश
विग्रहगति में पर्याप्तियाँ
पर्याप्तक नामकर्म वाले जीव भी विग्रहगति में अपर्याप्तक रहते हैं। पं.रतनलाल बैनाड़ा जी
पुण्य
पुण्य सर्वथा हेय नहीं, श्रावकों के लिये पापानुबंधी हेय है पर पुण्यानुबंधी उपादेय है । मुनि श्री सुधासागर जी
भोगभूमि और कल्पवृक्ष
अढ़ाई द्वीप के बाहर की भूमि में कल्पवृक्ष नहीं होते हैं क्योंकि वहाँ मनुष्य नहीं रहते हैं और तिर्यंचों को कल्पवृक्ष चाहिये नहीं । प्रकाश
कर्ता / उपादान / निमित्त
क्रोध आया, इसमें कर्ता आदि को कैसे घटित करें ? क्रोध करती है आत्मा, निमित्त है कर्म, साधन – अपशब्द कहने वाला । कर्ता दो
मुमोक्षु
जो छोड़ने/छूटने का इच्छुक हो । (यदि मोक्ष का इच्छुक मानें तो ८वें गुणस्थान से मुमोक्षु परिभाषा घटित नहीं होगी ) मुनि श्री प्रमाणसागर जी
गत्यागति
गत्यागति का मापदंड़ लेश्या है । इसीलिये मिथ्यादृष्टि भी नौवें ग्रेवियक तक जा सकता है । मुनि श्री सुधासागर जी
देवों में प्रमाद
1. चौथे गुणस्थान से ऊपर नहीं जाते । 2. जब जो चाहिये, तुरंत मिलना चाहिये । (प्रायः मिल भी जाता है) आचार्य श्री विद्यासागर जी
आकाश में उत्पाद/व्यय
आकाश द्रव्य में अलग अलग अवगाहना वाले द्रव्य अलग अलग समय और स्थानों पर स्थान पाते हैं, उससे उत्पाद/व्यय समझना चाहिये । मुनि श्री सुधासागर
योग-निरोध
सामान्य-केवली भी योग-निरोध करने एकांत में चले जाते हैं/समवसरण में बैठे हों तो समवसरण छोड़ देते हैं क्योंकि समवसरण में कोई शरीर नहीं छोड़ता है
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