Category: संस्मरण-आचार्य श्री विद्यासागर

वृद्ध/युवाओं का धर्म

आ.श्री विद्यासागर जी बहुत बार निवेदन करने पर भी सागर नहीं आ रहे थे । सुधासागर जी महाराज ब्रह्मचारी अवस्था में अन्य ब्रम्हचारियों के साथ

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वैराग्य

कड़क सर्दी में आचार्य श्री विद्यासागर जी के शरीर में कांटे उठ रहे थे, भक्त के इंगित करने पर आ. श्री ने कहा – शरीर

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सत्संग

यदि व्यक्ति विवेकी है तो उसे सत्संग की क्या आवश्यकता ? इस प्रश्न के ज़बाब में गुरु ने जानवरों को बाँधने वाले खूँटे को हिलाने

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आहार

आ.श्री विद्यासागर जी ने आहार में एक पंड़ित जी के हाथ से कोई चीज़ नहीं ली पर दूसरे व्यक्ति से ले ली । पंड़ित जी

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मोह

मोह कम कैसे करें ? आचार्य श्री – (पीछी कमण्ड़ल उठाकर चलते हुये) ऐसे कम करते हैं ।

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कीर्ति

आचार्य श्री का इतना यश इसलिये है क्योंकि उन्होंने कभी किसी की निंदा नहीं की, प्रतिकार तक नहीं करते हैं । मुनि श्री कुंथुसागर जी

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शरीर

पं. श्री दरबारीलाल जी कोठिया न्यायाचार्य के समाधिमरण के दौरान उन्होंने आचार्य श्री को बताया की शरीर बहुत तंग कर रहा है । आचार्य श्री –

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निर्मोह

आचार्य श्री से किसी ने पूछा – आपके इतने चाहने वाले हैं, सब आपको याद करते रहते हैं तो आपको हर समय हिचकी आती रहती

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भाषा समिति

आचार्य श्री विद्यासागर जी कभी भी अपने शिष्यों की गलतियों को बताते नहीं, सिर्फ इशारा कर देते हैं । शिष्य खुद गलती स्वीकार कर प्रायश्चित

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उत्तम ब्रम्हचर्य धर्म

जनसंख्या की वृद्धि रोकने के लिये परिवार नियोजन की जरूरत नहीं, पाप के नियोजन की  जरूरत है । वासना ही है जो उपासना और आत्मा की

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मंगल आशीष

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