Category: 2016

द्रव्य/भाव

भाव में वर्तमान की प्रधानता होती है, द्रव्य में वर्तमान की प्रधानता नहीं होती है । क्षु. श्री ध्यानसागर जी

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शरीर

नाम कर्म के उदय से प्राप्त होकर शीर्यन्ते (गलते) हैं, वे शरीर हैं ।

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भाव

मुक्त जीवों के दो भाव (क्षायिक, पारिणामिक) तथा संसारिओं के 3, 4, तथा 5 भाव होते हैं ।

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स्थिति

उत्कृष्ट संज्ञी के ही । जैसे मोहनीय ,संज्ञी के 70 कोड़ा कोड़ी सागर पर एक इंद्रिय के एक सागर से अधिक नहीं । पाठशाला

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स्थिति बंध

प्रकृतियों का जघन्य स्थिति बंध, उनकी व्युच्छुत्ति के समय होता है । करूणानुयोग दीपक – 60

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प्राण

संज्ञी के दस प्राण, पर्याप्तक की अपेक्षा कहा है । अपर्याप्तक अवस्था में तो सात प्राण (मन बल, वचन बल तथा श्वासोच्छवास बिना) ही होते

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छठा काल

इसमें सम्यग्दर्शन नहीं होता है । कारण ? यहाँ अवधिज्ञान नहीं, सो पश्चाताप नहीं । जातिस्मरण नहीं, सो निमित्त नहीं । बाई जी

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मंगल आशीष

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