Category: 2011

आयुबंध का अनुभाग

इंद्र और सामानिक देवों की आयु, शक्ति आदि बराबर होती है, पर इंद्र की आज्ञा में रहना होता है । दौनों की आयु की स्थिति बराबर

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अज्ञान/कुज्ञान

अज्ञान औदायिक ज्ञान है, कुज्ञान क्षयोपशमिक ज्ञान है । (अज्ञान – ना जानना, कुज्ञान – उल्टा जानना )

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सर्वघाती निषेक

क्षयोपशमिक भाव में सर्वघाती निषेकों का उदय नहीं होता, सिर्फ सत्ता में रहते हैं जैसे अचक्षु दर्शन, 5 अंतराय आदि का । पं. रतनलाल बैनाड़ा

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परिहारविशुद्धि चारित्र

परिहारविशुद्धि चारित्र के साथ साथ सामायिक और छेदोपस्थापना चारित्र होता है । कुछ ऐसे मुनिराज भी होते हैं जिनके पांचों चारित्र पाये जाते हैं ।

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विक्रिया

नीचे नीचे नरकों में विक्रिया अशुभतर होती जाती है, अशुभतर याने विक्रिया सिमिट नहीं पाती, फैलती जाती है । तत्वार्थसूत्र- अ. 3 सू.3

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जीवत्व

व्यवहार नय से जिनके 10 प्राण हों, निश्चय नय से जिनके चेतना हो । व्यवहार नय से सिद्ध, जीव नहीं होते । अशुद्ध पारिणामिक –

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सम्यक्त्त्व और आस्रव

सम्यक्त्त्व तो आस्रव का कारण होता नहीं है, फिर देवायु में कारण क्यों कहा ? सम्यग्दृष्टि जीव जब आयुबंध करता है तब देवायु का ही

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निर्जरा

क्या निर्जरा आठों कर्मों की होती है ? नहीं, सात कर्मों की, आठवाँ आयु कर्म है, उसकी निर्जरा तो घात होगा । आचार्य श्री विद्यासागर

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मंगल आशीष

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February 7, 2011

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